12Th Fail Review: संघर्ष और हौसले की सच्ची कहानी, जो आज की बाकी फिल्मों से है अलग – Zee News Hindi

Vikrant Massey: ऐसे दौर में जबकि बॉलीवुड अपनी फिल्मों का हीरो नए सिरे से गढ़ने के लिए साउथ की पुष्पा और केजीएफ जैसी फिल्मों को आदर्श मान रहा है, निर्माता-निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने बताया है कि कहीं जाने की जरूरत नहीं. हमारे हीरो आस-पास ही हैं. 12वीं फेल एक बायोपिक फिल्म है, आईपीएस अनुराग पाठक की कहानी. जो उनकी इसी नाम की बेस्टसेलर किताब पर आधारित है. जिसमें, अपने बीहड़ों में पलने वाले बागियों के लिए चर्चित चंबल इलाके का 12वीं में फेल होने वाला लड़का, दिल्ली आकर यूपीएससी की परीक्षा पास करता है और पुलिस अफसर बनता है. विधु विनोद चोपड़ा की यह फिल्म उन्हीं के बैनर तले पहले बन चुकी मुन्नाभाई एमबीबीएस और 3 इडियट्स जैसी फिल्मों की तरह कहीं न कहीं देश में शिक्षा, उसे लेकर लोगों की सोच और व्यवस्था की बात करती है.

कुछ डिफरेंट

चंबल से शुरू होने वाली यह कहानी इस मायने में अलग है कि हीरो यहां अपने ईमानदार पिता की नौकरी जाने, स्थानीत नेता द्वारा उसके और भाई की आजीविका छीन लेने पर बंदूक नहीं उठाता. बल्कि वह ईमानदार पुलिस अफसर (प्रियांशु चटर्जी) से प्रेरणा लेता है. तय करता है कि दिल्ली जाकर पढ़ेगा और पुलिस अफसर बनेगा. हालांकि इस कहानी में लव स्टोरी और दोस्ती भी अहम भूमिका निभाती है, लेकिन इससे पहले लेखक-निर्देशक आपको दिल्ली में यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चों के जीवन संघर्ष, उनकी जिजिविषा और सपनों को टूटते या पूरा होते दिखाते हैं. विधु विनोद चोपड़ा ने पूरे माहौल का खूबसूरती से रचा है.

मीडियम की बात
फिल्म की कहानी जब चंबल और इसके मुख्य किरदार मनोज कुमार शर्मा (विक्रांत मैसी) की चेतना के जागरण से आगे बढ़कर यूपीएससी के दायरे में आती है, तो निर्देशक एक बड़ा मुद्दा लेकर आते हैं. वह है, आम लोगों और व्यवस्था की सोच. हिंदी मीडियम और इंग्लिश मीडियम का फर्क. देश में चल रहे अमृत काल के दौर में भी यह बात कहीं गहराई तक जड़े जमाए है कि यूपीएससी जैसी परीक्षा को वही पास कर सकते हैं, जो अंग्रेजी जानते हैं. हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं वाले पिछड़े हैं. लेकिन यहीं पर निर्देशक ने पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा को नायक के किरदार में पिरोया है. चोपड़ा ने परीक्षा के अलग-अलग चरणों की बारीकियों का भी पूरा ध्यान रखा है.

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सीखने की बातें
12वीं फेल निश्चित ही एक प्रेरणादायी कहानी है, लेकिन मनोरंजन भी करती है. फिल्म देखने के बाद आप कुछ सोचते हुए ही उठते हैं. भले ही, असंभव कुछ नहीं जैसी बात आपके मन में रहती है, मगर सफलता के शिखर तक की कठिन यात्रा भी यहां सामने दिखती है. जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर निचोड़ लेती है. फिल्म में यूपीएससी की तैयारी करते हुए हीरो का रात-दिन आटा चक्की में काम करना, उसके पाटों के बीच पिसने की तरफ ही संकेत करता है. यह बताता है कि इस परीक्षा से गुजरना कितना कठिन है. खास तौर पर युवा दर्शकों को यह फिल्म देखी चाहिए. यह उन्हें कई बातें सिखा सकती है.

किरदार के हालात
मनोज कुमार शर्मा की भूमिका में विक्रांत मैसी कामयाब हैं. उनके किरदार में अलग-अलग शेड्स हैं. एक तरफ वह ऐसी जगह से निकले हैं, जहां पढ़ाई के नाम पर नकल से परीक्षा पास कराई जाती है. दूसरी तरफ दिल्ली में यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी के लिए लाइब्रेरी से लेकर आटा चक्की में काम करते हैं. 14 घंटे काम, छह घंटे पढ़ाई और चार घंटे नींद. फिर गांव में मां और परिवार की चिंता. जेब में पैसे नहीं. इन सबके बीच पढ़ाई और परीक्षा. विक्रांत ने पूरी शिद्द से खुद को इन तमाम हालात में ढाला है. उनकी प्रेमिका के रूप में मेधा शंकर, उनके दोस्त के रूप में अनंतविजय जोशी, कई बार यूपीएससी की परीक्षा पास करने की कोशिश कर चुके अंशुमान पुष्कर और उनकी प्रेरणा बनने वाले पुलिस अफसर प्रियांशु चटर्जी ने अपनी भूमिकाएं सधे ढंग से निभाई हैं.

सबसे अलग
फिल्म की कहानी यूं तो सरल नजर आती है, लेकिन इसे सहजता से संभालना आसान नहीं था. विधु विनोद चोपड़ा करीब ढाई घंटे की फिल्म में बांधे रहते हैं. रोचक बात यह है कि फिल्म उनकी इससे पहले की फिल्मों से पूरी तरह से अलग है. यहां न अंडरवर्ल्ड है और ही झीलों में चलती नावों जैसी प्रेम कहानी. 12वीं फेल ठोस हकीकत की जमीन पर खड़ी है. ऐसे समय जबकि बॉलीवुड बड़े-भव्य सैट, वीएफएक्स, फंतासी और बाहुबली हीरो वाली कहानियां ढूंढ रहा है, विधु विनोद चोपड़ा चुपके से बता जाते हैं कि हमें कैसी फिल्मों की जरूरत है.

निर्देशकः विधु विनोद चोपड़ा
सितारे: विक्रांत मैसी, मेधा शंकर, अनंत विजय जोशी, आयुष्मान पुष्कर, प्रियांशु चटर्जी
रेटिंग***1/2

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